घाटियों में गम समा गये
**घाटियों में गम समा गये**
**********************
पहाड़ों सी ऊँची मुसीबतें
घाटियों में गम है समा गये
सरिता के बहाव सी जिंदगी
बहते जल में लम्हे बह गये
गम की बदली सी है छा गई
अश्रु की बरसात में बह गये
नीला अंबर तो साफ सुथरा
धूलकण कहाँ से हैं आ गये
झरने खुशियों के बहने लगे
दिन बंसती सुहाने आ गये
धरती प्यासी थी पुकार रही
मेघ बरसते प्यास बुझा गये
चातक उपासना में लीन है
जलधर दिशिए बदल गये
मनसीरत उधेड़बुन में मस्त
सोच में सोचते ही रह गये
*********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)