घर
मैं कहीं भी जाऊँ
हमेशा घर लौटता हूँ
मैं ख़ुश होता हूँ
तो घर लौटता हूँ
दुखी होकर भी घर ही लौटता हूँ
जो रास्ते कभी घर से होकर जाते थे
उनसे मिलकर भी घर ही लौटता हूँ
मैं किसी अनजान से मिलकर लौटता हूँ
या अपनो से मिलने लौटाता हूँ
तो भी घर ही लौटता हूँ
भरी दोपहरी में लौटता हूँ
रात के सन्नाटे में लौटता हूँ
सुबह सवेरे लौटता हूँ
ढलते सूरज में लौटता हूँ
भूख से बोझिल होकर लौटता हूँ
रेस्तराँ जाकर भी घर ही लौटता हूँ
मैं नदी किनारे पानी की लकीर बना
ऊँचे पहाड़ पर पत्थरों के Cairn रख
घने जंगल में पेड़ पर निशाँ खोद
आसमान में तारे गिनता हुआ
मैं हर बार, पिछली बार की तरह
घर ही तो लौटता हूँ
मैं तुझ से मिलकर घर लौटता हूँ
मैं तुमसे मिलने घर लौटता हूँ
अकेला होता हूँ तो घर लौटता हूँ
मैं किसी का हाथ पकड़ भी घर ही लौटता हूँ
घर से निकलते वक़्त
घर लौटने का ही ख़याल होता है
मैं हर बार पहले से थोड़ा ज़्यादा होकर घर लौटता हूँ
जो कोई भटक जाए
तो अपने पैरों के निशान ढूँढ
घर लौटना इतना मुश्किल भी तो नहीं?
@संदीप