घर
घर
केवल मकान बनते जुड़ ईंट पत्थर
माँ की तपस्या त्याग से वो बने घर
दीवारों पर चढ़ी माँ के प्यार की रंगत
मिट्टी में पसीने की ख़ुशबू की संगत
आंगन में पायल की रुनझुन बजी
चूल्हे की आँच पर उसकी ममता पकी
हर कोने से झूलती यादों की तस्वीर
सब मिल संवरती एक घर की तक़दीर
माँ होती घर की रौनक़ नूर दिल जान
जन्नत बनाती फूँक उसमें अपने प्राण
तुमसे ही तो घर घर है माँ
वरना वो एक फ़क़त मकाँ
रेखा