घर है मकान नही
ये मेरा घर है कोई छह कमरों का मकान नही
पाकशाला एक ही है यहां दूसरी का काम नही
गाय की रोटी एक और कुत्ते की एक निकलती है
परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर मुस्कान मिलती है
मां जब अपने हाथों से चूल्हे पर रोटी बनाती है
हर एक की थाली में फिर बारी बारी से आती है
गाय भी मां के हाथों की रोटी खाकर रंभाती है
दुम हिला कर रोटी मांगता नाम उसका मोती है
सबको रोटी खिलाती मां अन्नपूर्णा सी लगती है
माथे का पसीना पल्लू से पोंछती ममतामयी लगती है