घर से भागी लड़की
इक लड़की भागे है घर से,गिर जाए सबकी नज़र से।
रिश्ते-नाते सब कुछ हारे,भटके है जीवन डगर से।।
कच्ची वय का लव नादानी,सोचो समझो है इशारा।
आँखों का है ये आकर्षण,जीवन का झूठा सहारा।
करियर की मीठी बरबादी,हो जाती है इस सफ़र से।
रिश्ते-नाते सब कुछ हारे,भटके है जीवन डगर से।
फ़िल्मी दुनिया को भूलो तुम,असली से ही दिल लगा लो।
मन की बाजी ना हारो तुम,जीवन को पहले सजा लो।
सुंदर तन मकसद ना मानो,छोड़ो तारीफ़ें अधर से।
रिश्ते-नाते सब कुछ हारे,भटके है जीवन डगर से।
दुनिया बन जाती है ज़ालिम,आँसू हो जाते नज़ारे।
कमज़ोरों का शोषण होता,अपने हट जाते किनारे।
खुद को कैसे संभालेगी,नफ़रत धोखों के समर से।
रिश्ते-नाते सब कुछ हारे,भटके है जीवन डगर से।
दो दिन का होता आकर्षण,होती दो दिन की खुमारी।
बासी लगती फिर तन शोभा,मन तो है चंचल मदारी।
तन्हा हो रूखे मंज़र में,रोयेगी फिर मन ज़िगर से।
रिश्ते-नाते सब कुछ हारे,भटके है जीवन डगर से।।
इक लड़की भागे है घर से,गिर जाए सबकी नज़र से।
रिश्ते-नाते सब कुछ हारे,भटके है जीवन डगर से।।
आर.एस.प्रीतम
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