घर मैं हूँ जैसे पड़ा समान प्रिये
घर में हूँ जैसे पड़ा समान प्रिये
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तेरे दर पर रहूँ मैंदिन रात प्रिय
तेरी सुनता रहूँ मैं हर बात प्रिये
यारों संग छूट गए हैं साथ प्रिये
तेरे अंग संग रहूंँ दिन रात प्रिये
सह लिए थे तेरे उलाहने बहुत
उलाहना बोझ रहा हूँ तार प्रिये
दिन रात मुझे तुम टोकती थी
हर टोक रहा हूँ अब उतार प्रिये
बाहर जाने पर तुम रोकती थी
घर मैं हूँ जैसे पड़ा सामान प्रिये
बच्चों के पापा रहते घर पर है
बच्चों संग खेल रहा ताश प्रिये
जो कहते तुम घर पे रहते नहीं
बाहर क्यों नहीं जाते काम प्रिये
तेरी सेवा करने से मैं वंचित था
तेरी सेवा करूँ मैं दिन रात प्रिये
सुखविंद्र परिवार हो स्वर्ग तुल्य
बाकी रह ना जाए अरमान प्रिये
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)