@घर में पेड़ पौधे@
डॉ अरुण कुमार शास्त्री / एक अबोध बालक * अरुण अतृप्त
@घर में पेड़ पौधे@
मानवीय ज़िदगी के बस दो ही आधार है ।
जिनके बिना ज़िंदगी का सोचना दुश्वार है ।
जिनके बिना ज़िदगी का सोचना दुश्वार है ।
यूँ तो प्रकृति ने संतुलन बना कर ही था दिया ।
वही इस जगत का अत्यंत
गुणकारी अविर्भाव भी था ।
जीव और पेड़ पौधों को
पर्यावरण संतुलन की तब नहीं थी
चिंता कुछ विशेष देख भाल की ।
रूप बदला परिवेश बदला
मानव की सोच बदली ।
खोज बदली साथ साथ विकास
की एक अंधी दौड़ पसरी ।
तब से सब कुछ बदल गया ।
पेड़ पौधों से जीवों का रिश्ता बदल गया ।
घर आँगन मिट गये बहुमंजिली इमारतें आई ।
फर्श तेरे हिस्से छत मिरे हिस्से आई ।
दूरियां बढ़ गई वनस्पति और इंसान की ।
छोटे छोटे गमलों में फिर पेड़ पौधे गये लगाये ।
ओरनामेंटल कुछ कुछ औषध तो
कुछ किचन गार्डन हित को आये ।
कोशिश तो खूब करी गई ।
हरियाली के समाधान की ।
लेकिन क्या सुधर गई दशा
इस गरीब इंसान की ।
सुख की चाहत में विकास की आहट में
गई बिगड्ती हवा अखंड भू भाग की ।
किसको बोलो और क्या बोलो ।
विश्व पटल पर अब क्या मुहं खोलो ।
मास्क लगाये घूम रहा है
चुल्लू चुल्लू सींच रहा है ।
लिये चाह चन्द विटप अरमांन की ।
लगा कर चन्द पेड़ पौधे घर में
दीन हीन मानव,
जिन्दगी जी रहा है जिंदगी जी रहा है ।