घर के भीतर सीख रहे हैं( कोरोना गीत )
घर के भीतर सीख रहे हैं( कोरोना गीत )
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घर के भीतर सीख रहे हैं अब हम समय बिताना
( 1 )
किसने सोचा था कोरोना बीमारी आएगी
किसने सोचा था यह सारे जग भर में छाएगी
किसने सोचा था यह छूने भर से लग जाएगी
किसने सोचा था जिंदा इंसानों को खाएगी
यह डरावना दौर हमारे जीवन में था आना
( 2 )
मिलना – जुलना बंद हो गया अब कब हाथ मिलाते
होली पर किसने देखा है किसको गले लगाते
अगर किसी से छू भी जाओ तो दिल घबराता है
अगर छींक ले कोई , कमरा खाली हो जाता है
नहीं सिनेमा हॉल मॉल जाने का रहा जमाना
( 3 )
दुनिया से कटकर हम खुद में खो-खो कर रह जाते
टीवी मोबाइल के सँग में सारा समय बिताते
मिलने वालों से भी मिलने से रहते कतराते
नजरबंद कर डाला खुद को अब कैदी कहलाते
प्रश्न उपस्थित सिर्फ एक है अपनी जान बचाना
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451