घर की मालकिन
घर की मालकिन
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मेरी सुनते ही कहां हो, सब अपनी मर्ज़ी का करते हो। कहने को मालकिन हूं, पर हूं क्या ? मै ही जानती हूं ? आपने ये घर बनवाया है ? चारो तरफ खुला खुला, हर तरफ रोशनदान, बडी बडी खिड़कियां आंगन । धूल मिट्टी हवा आती रहती है। सफाई का ध्यान तो मुझे ही रखना पडता है। हर रोज सुबह से लेकर रात बिस्तर पर जाने तक खटती रहती हूं, तुम्हारे लिए, तुम्हारे बच्चों के लिए और इस घर के लिए। माना कि बच्चे बडे हो गये, अपने पैरों पर खडे हो के अपनी-अपनी घर गृहस्थी में रम गए पर आज भी सब कुछ परोक्ष रूप से उनके लिए ही होता है। आखिर मां हूं मेरी जान तो उन्ही मे बसती है।
त्योहार आ रहा है सभी बच्चे आयेंगे। पूरा घर अस्त-व्यस्त पडा है, व्यवस्थित करके साफ सफाई करनी है। देखो जी कहे देती हूं अकेले के बस का है नही, साथ लगना पडेगा। जानती हूं घर के काम मे तुम्हारा मन नही लगता, एक सुई भी उठा के रख नहीं सकते फिर भी मेरी हेल्प तो कर ही सकते हो जैसा कहूं करते रहना, सब कुछ हो जाएगा। मालकिन वाली फीलिंग ने मेरे अन्तर्मन को प्रफुल्लित कर दिया।
ग्राउंड और फर्स्ट फ्लोर तो गया, बस अब छत ही रह गई है। आज छुट्टी का दिन है, दोनो लोग लगते हैं जल्दी हो जाएगा। अरे सुन भी रहे हो या मै ऐसे ही बड़बड़ा रही हूं। दिन निकलने को है, मै उपर चल रही हूं तब तक कूड़ा करकट किनारे लगाती हूं, आओगे तो धुलाई भी कर लूगी। साफ सफाई देख के बच्चे खुश होंगे मेरा भी मन हर्ष उल्लास से भर जाएगा।
आगये, देखो झाडू हो गयी पर उतनी सफाई दिख नही रही चलो धुलाई भी कर लेती हूं। ऐसे क्या देख रहे हो ? – जानती हूं घुटने मे तकलीफ रहती है, ठीक से चल फिर नही पाती और छत की धुलाई की बात कर रही हूं यही कहना चाहते हो ना। आप हो ना मेरी मदद को, स्टूल दे दो कुछ बाल्टी पानी दे देना, बैठे बैठे कर दूंगी। अरे मना मत करो, मुझे करने दो। पानी नही देना चाहते मत दो, मै खुद ही ले लूंगी।
स्वरचित
मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297