घर की पुरानी दहलीज।
घर की पुरानी दहलीज है मां कैसे छोड़ दे।
वादा निभाया था पति से वह कैसे तोड़ से।।1।।
हर इक ईंट को दिले ख्वाबों से सजाया है।
फिर जा के कही खून पसीने से लगाया है।।2।।
जिन्दगी का अपनी यही आगाज़ किया है।
अब मौत भी यही हो ये फरियाद किया है।।3।।
उसके जीवन साथी की बहुत यादें है यहां।
ये घर ही उसके लिए उसका सारा है जहां।।4।।
बच्चों के बचपन को सीचा है उसने खूँ से।
दुआ है उसकी मौत हो इस घर में सुकूं से।।5।।
तमाम उम्र जी है उसने इस घर में अपनी।
यही से तुरबत में जाएगी जिन्दगी उसकी।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ