घर की देहरी पर ही
मन
मुझे आवाज लगाकर
कह रहा है कि
चल उठ
कहीं टहल कर आते हैं
रेगिस्तान में पहुंचे
चारों तरफ रेत ही रेत मिली
रेत के बवंडर में घिरे
सिर से पैर तक धंसे
मुश्किल से जान बचाई
वहां से निकले
समुन्दर तट की तरफ बढ़े
समुन्दर की लहरों में
नहा गये
साथ बहने लगे
मुश्किल से किनारे आकर
लगे
वहां से निकले
पहाड़ों की बर्फ
प्रकृति की सुंदरता निहारने
पहाड़ दरकने लगे
रास्ते बंद
एक लंबे समय के बाद बमुश्किल
निकले
यह दुनिया छोड़
चांद की सैर पर चले
वहां भी पत्थर ही मिले
वापिस लौट आये
अपने घर फिर हम
घर की देहरी पर ही बैठ गये
सड़क पर आते जाते लोगों की भीड़ और
उनका आवागमन, उनके
वार्तालाप, उनकी क्रियायें,
प्रभु की लीलायें देखी
कुछ मन हल्का हुआ
फिर कुछ तरोताजा होकर
हम उठकर अपने कमरे में चले आये।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001