घर की कैद में कैदी है इंसान
घर की कैद में कैदी है इंसान
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जब से घर की कैद में कैदी है इंसान
पर्यावरण नहीं दुषित साफ है जहान
आसमान अब खाली द्विजों के लिए
पक्षियों के पिंजरे में कैदी सा इंसान
जीव -जंतुओं के लिए धरा खाली हुई
पशुओं की भांति खूंटी से बंधा इंसान
औरों को बंदी बनाने में आनन्द लिया
बंदी है बंधन मे कैसा दिख रहा इंसान
आकाश कितना नीला कालापन नहीं
निखरा निखरा आसमां अंदर है इंसान
प्रकृति से पंगेबाजी का है सिला मिला
प्रकृति रौद्र रूप में,भुगत रहा है इंसान
सुखविन्द्र सीख जाओ तुम इंसानियत
इंसानियत बिना दानव बन गया इंसान
सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)