घर और घर की याद
घर यानी संसार को जानने का ठौर,
और घर की याद यानी ?
अपना प्यारा अतीत।
मां की निश्छल- ममता,
पिता की रौबदार- छाया,
दादा* की दादागिरी,
दीदी का सहारा,
बडी होने का धौंस।
घर यानी संसार को जानने का ठौर
और घर की याद यानी अपना प्यारा अतीत ।
भाई- बहन का क्षणिक प्रेम,
सहोदर – अनुराग,
उनसे लगे घाव,
लगाव, फिर भी,
अनवरत ही नोक-झोंक ,
यानी सब कुछ अपना,
अपनापन का संसार।
घर यानी संसार को जानने का ठौर
और घर की याद यानी अपना प्यारा अतीत ।
वो झोपड़ी मिट्टी की,
महल सरीखी,
वो दरवाजा टिन का,
बेहद जरीन था,
जो छत टिन की ही,
बांसों के सहारे,
हमारी मूंदी आंखों के,
स्वप्न – संसार संवारती।
घर यानी संसार को जानने का ठौर
और घर की याद यानी अपना प्यारा अतीत ।
वहीं फर्श माटी का,
गोमय- मृद् लिपा था,
खुरदरा भी बेशक !
चोटिल तो न करता,
बड़ा खुश्क स्पर्शी,
कंकड सख्त साथी।
घर यानी संसार को जानने का ठौर ,
और घर की याद यानी अपना प्यारा अतीत ।
घर यानी पडोस,
फलदार पेड,
ऊंची बेल,
सडक, नाला,
नदी-किनारा,
रेत-कंक्रीट,
मिट्टी का ढेर,
खुले खेत – मैदान।
घर यानी संसार को जानने का ठौर ,
और घर की याद यानी अपना प्यारा अतीत ।
घरेलू संगी ,
मेमने, पिल्ले, साथी
पप्पीज बिल्ली के ,
रुचे शुक की बोली।
इनमें बीता पल ,
तीता या मीठा कल ,
मधुर-स्निग्ध-सान्द्र,
स्मृति कल्पनाएं।
घर यानी संसार को जानने का ठौर,
घर की याद यानी अपना प्यारा अतीत।।