*घर आँगन सूना – सूना सा*
घर आँगन सूना – सूना सा
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घर आँगन सूना – सूना सा,
तुम बिन जीना है ठूँठा सा।
बिखरी उजड़ी बसती बस्ती,
उखड़ा जीवन का खूंटा सा।
फल-फूलों का सारा झड़ना,
खिलती बगिया मे चूना सा।
कैसा पतझड मौसम आया,
मुरझाया मन का कोना सा।
होगा उनका आना – जाना,
भाता ना हर पल रोना सा।
मनसीरत कब होगी बरखा,
हर कोई रोता मृगछौना सा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)