33. घरौंदा
सहेज लूंगा घर की ईंटों को पुराने शहर में जो छोड़ आया था,
तेरी यादों के बगीचे में एक फिर कोई घरौंदा अपना होगा।
दो खिड़कियों के बीच जो फासला है करता रहा जो फैसले हमारे,
उसको बुझाकर बस एक खिड़की वाला फिर कोई घरौंदा अपना होगा।
कपड़ों की तह में खुशियां छुपाए रौशन करने को तरसे पूरा घर,
अब बस एक दिये से जगमग फिर कोई घरौंदा अपना होगा।
तमाशबीन कई रहते हैं सबकी गली के हर घर में,
सबको बस यही लगता है तमाशा उनके यहां नहीं होता,
सुगबुगाती बारिशें चहलकदमी की फसल बोई जा रही हैं हर नज़र,
ऐसी ही नजरों से दूर कहीं घुमंतू फिर कोई घरौंदा अपना होगा।।
~ राजीव दत्ता ‘ घुमंतू ‘