घम
कहता
कुछ नही
आखें नम
ही काफी है
बहुत कुछ
कहने को
तड़पता है
दिल
शरीर
बेहाल
शून्य में
खोजती
ये आखें
नहीं
कुछ और
यही है
“गम”
मेरे दोस्त
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
कहता
कुछ नही
आखें नम
ही काफी है
बहुत कुछ
कहने को
तड़पता है
दिल
शरीर
बेहाल
शून्य में
खोजती
ये आखें
नहीं
कुछ और
यही है
“गम”
मेरे दोस्त
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल