घमंड
तन मन धन की झूठी काया
घमंड में पड़े किस पर छाया ।
माँ ने चलना सिखाया
अंगुली पकड़ कर आगे बढ़ाया
धोकर नितम्ब हमारे चड्डी पहनना सिखाया
फिर क्यों घमंड में गाल फुलाया ।
धना धन कैसे ढंगा बजाई
धर धर स्वर्ण लंका धराई ।
घमंडी हिरण्यकश्यप धरा पर हाहाकार मचाया ,,,
प्रह्लाद भक्ति से विष्णु अवतार आया ।
सर्वनाश में नयन से उतरकर चश्मा आया ,,
घमंड में परिवार को चकमा आया ।
घमंडी ने क्रोधग्नि की तेज ज्वाला भड़काई
नम्र अश्रु धारा की शीतलता ने
बुझाई ।
गृह गृह घमंड ने क्लेश बरसाई,,,
विनाश काले विपरीत बुद्धि लंकेश झरकाई ।
सत्ता लालची मस्त मस्त सत्ता भोगी ,,
अंकुश ही नही ,चढ़े घमंडी रोगी ।
थी बापः की पसीने की कमाई ,,
घमंडी बेटे ने सम्पति पर कब्जा जमाई ।
तर तर पसीने में बापः ने पाय पाय जोड़ाइ
घमंड ने बेटे को राख में धक्काई ।
पाय से सब कुछ खरीद पाई
नही सांसे क्या खरीद पाई ?
फिर पाई का क्यों घमंड आई
रूप ,सुंदरता पर क्यों अहंकारी
ये रुप् एक दिन यु ही ढल जाई ।।
संवारना है तो अपने मन को संवाराई ,,
सच्चा मन ही तुम्हे सुंदरता बनाई ।।
अपनी भक्ति पर क्यों घमंडाई ,,
जलाने पर दिया सब भक्त नही बनपाई ,,
प्रभु ही स्वयं उसके भक्त बन पाई ,,
जो निरस्वार्थ से दूसरों की सेवा करपाई ।
कर मत किस्मत पर घमंडाई
पल पल में किस्मत बदली जाई ।।
वक़्त कभी न एक साई ,,
प्रवीण कहे आज तेरी तो कल मेरी बारी आई ।
✍✍प्रवीण शर्मा ताल
जिला रतलाम
टी एल एम् ग्रुप संचालक