घमंड ही घमंड है l
घमंड ही घमंड है l
भद्दा माप दंड है ll
सहज ही स्वयं को ही l
जो ना है सही सही ll
बस दंड ही दंड है ll
बड़ी ही कसमकस है l
चित्त को रहा कस है ll
तो मति खंड खंड है ll
रिश्ते गलत पनपते l
ना कभी सही लगते ll
भेद भाव प्रचंड है ll
अन्धकार धेरे है l
वही वही फेरे है ll
ना नजर, पाखण्ड है ll
सुधार कैसे होगा l
सदा गलत ही होगा
साथी भंड भंड है ll
पल पल सहज पनपते l
दिख कर भी ना दिखते ll
चिंता भरे काण्ड है ll
शांत जी न पाओगे l
बारबार तडपोगे लल्ल
प्यास कर्म अखण्ड है ll
अरविन्द व्यास “प्यास”
व्योमत्न