कोई ज्यादा पीड़ित है तो कोई थोड़ा
(मुक्त छंद)
सफरचट्ट, मक्खीकट, पतली, कभी ऐंठ में मूँछ।
कभी- कभी लाचार दिखे जैसे कुत्ते की पूँछ ।।
ज्यों कुत्ते की पूँछ, मूँछ की हालत ऐसी ।
बिना मूछ वाली ने कर दी सब की ऐसी तैसी।।
कह “नायक” कविराय पसीना गलमुच्छों ने छोड़ा।
कोई ज्यादा पीड़ित है तो कोई थोड़ा ।।
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता
उक्त मुक्त छंद ” दैनिक आज” समाचार पत्र कानपुर में दिंनांक-27मई 1999 को प्रकाशित हो चुका है |
1999में मैं उरई में रहता था |
बृजेश कुमार नायक