घने बादलों बीच
रोला छंद आधारित गीतिका.,..
घने बादलों बीच, झांकती हूँ मैं अक्सर।
हम दोनों के बीच, नहीं कोई है अंतर।
पीड़ा हृदय अपार,भरा हैं विस्तृत कोना,
क्रंदन करती नित्य, झड़ी पलकों से निर्झर।
व्याकुल करुण पुकार,व्यथित श्रापों से श्रापित,
सजल नयन दिन रात,दिलों पर चुभते खंजर।
भरा हुआ है नीर, नयन प्यासी पथराई,
छोड़ दिया पद चिन्ह ,स्वाति के मुख मुक्ताकर।
मिटा दिया अस्तित्व,प्रेम पूरित नव आवृत,
सतत कठिन संघर्ष,फूटते अंकुर बनकर।
विरह वेदना हर्ष,सुभग अविरल जल शीतल,
कण-कण में संगीत,राग जीवन वीणा पर ।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली?,