घने तिमिर में डूबी थी जब..
घने तिमिर में डूबी थी जब..
किसने दीपक दिखलाया..
बैठी थी जब हो बेबस ..
तब कहो कौन आगे आया..
अब जब राहों में खुद तारे ..
तुम राह दिखाने निकले हो..
यह “झूठा सच्चा “प्रेम कहो..
अब किसे दिखाने निकले हो!!
जब आफत की घड़ियां केवल..
मुझको टेरा करती थी..
मेरी परछाई ही मुझसे ..
आंखे फेरा करती थी..
भूल चुकी जब ज़ख्म सभी..
तुम दवा लगाने निकले हो..
यह” झूठा सच्चा “प्रेम कहो ..
अब किसे दिखाने निकले हो!!
तूफानों के आ जाने पर..
हाथ सभी ने छोड़ा था..
आस कहीं यूं टूट रही थी…
तुमने भी मुख मोड़ा था..
जब आफत की घड़ियां बीती ..
तुम साथ निभाने निकले हो..
यह “झूठा सच्चा” प्रेम कहो ..
अब किसे दिखाने निकले हो!!
जब खड़ी अकेली थी पथ में.
तुमने कांटे ही बिखराए…
व्यंग्यो के तीरो से चल..
तुम गम पर मेरे मुस्कुराए..
जब कांटो से ही प्रेम हुआ..
तुम फूल बिछाने निकले हो..
यह “झूठा सच्चा” प्रेम कहो..
अब किसे दिखाने निकले हो!!
हुई मित्रता अब दुख से..
कलियां खुद से पीछे आई..
जीवन से हारे बरगद में..
फिर से छाई है तरुनाई..
जब जीवन खुद से सफल हुआ..
तुम राह दिखाने निकले हो..
यह “झूठा सच्चा”प्रेम कहो..
अब किसे दिखाने निकले हो!!
#कु प्रिया मैथिल