घनाक्षरी
बेटी कुल का मान है , सुकर्म परिणाम है
सृष्टि रचयिता वही , ऐसे न मिटाइये ।।
बेटी जब पढती है , समूचा जग पढ़ता है
दे सारी सुविधाएं , आगे तो बढाइये ।।
निडर काली जैसी हो,माँ दुर्गे का सा विस्तार
मनु जैसी मर्दानगी , साहसी तो बनाइये
भर ऊँची उडान को, छूयेगीं वो आकाश को
लगा कोमल पंखों को , , जरा तो सजाइये