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13 Oct 2024 · 1 min read

घटा सुन्दर

गीतिका
~~
निकल जाना जरा बाहर घटा सुन्दर बरसती पर।
नहीं चिन्ता कभी करना घनी सी जुल्फ उड़ती पर।

सभी का मन लुभाते हैं अचानक ये सघन बादल।
धरा है धन्य शीतलता लिए बौछार गिरती पर।

दिशा पश्चिम भरी है देखिए आभा लिए रक्तिम।
दिया करती निशा दस्तक सुहानी शाम ढलती पर।

कभी जब भी बदलते हैं धरा पर रंग कुदरत के।
नहीं कोई चला जादू किसी का नित्य दिखती पर।

हृदय होता प्रफुल्लित जब बहुत आनंद मिलता है।
सभी हर्षित हुआ करते स्वयं की प्यास बुझती पर।

कहीं कुछ है सभी की चाह है उस पार जाने की।
किसी का वश नहीं चलता मगर नदिया उफनती पर।

सभी आश्चर्य से हैं देखते नभ की तरफ सहसा।
दिशाएं सब अचानक कौंधती बिजली चमकती पर।
~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य

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