गज़ल
तेरे लबो की ही दुआ हूँ मै
गुल बनके आँचल में खिला हूँ मै
क्यो कररहे शिक्वे शिकायत तुम
तेरी हि नफरत का सिला हूँ मै
इक रोज तो बुझ जाएंगे हम भी
जलता हुआ बस इक दिया हूँ मै
तुमने लिखी जो आयतें दिल पर
उन आयतों से अब खफा हूँ मै
आदी नही था गम में जीने का
इन खुशियों से ही जला हूँ मै
महफूज था में तेरे साये में
अब दर्द – ऐ- दिल की दवा हूँ मै
फिर रात बीती बे करारी में
इस इश्क -ऐ- गम की वफ़ा हूँ मै
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
20/9/2017