गज़ल
हुआ हूँ दूर खुद से में तुमसे खफा नही
बेबस किया है वक्त ने में बेवफा नहीं
सीने में जख्म इतने लगे है मुझे यहाँ
ये जख्म सीने का मेरे अब भी भरा नहीं
होठों पे तेरे काँप रहा नाम जो मेरा
दुआ है मेरे लिये कोई बददुआ नहीं
जानूँ न क्या है तुमसे मेरी ये दिल्लगी
साँसों में बसते हो मेरे हमसे जुदा नहीं
कर चुके है तुमसे ये इजहारे मुहब्बत
मन बावरां ये फिर से कहीं पर लगा नहीं
होती है रोज तुमसे मुलाकाते ख्वाब में
ये इश्क फिर कभी सूफियाना हुआ नहीं
मर जाऊँ गर में तेरे मुहब्बत में अब यहाँ
कुर्बा – ऐ – इश्क होगा मिरा हादसा नहीं
( लक्ष्मण दावानी )