गज़ल
“गज़ल”
मुझसे जब भी मिली आहें भरती मिली
लव थे खामोश बस वो सिसकती मिली।
नींद में ख्वाब में जब भी देखा उसे
वो भी मेरी तरह ही तड़पती मिली।
नैना नम थे भरे अश्क़ आंखों में थे
एक झलक पाने को वो तरसती मिली।
गम से बोझिल था दिल थी उदासी बड़ी
रोते रोते भी वो मुझको हंसती मिली।
फिज़ाओं में ठंढक थी शीतल पवन
फिर भी शोलों के जैसे दहकती मिली।
था समंदर सवालों का अंदर छुपा
प्यार में गुफ्तगू फिर भी करती मिली।
भरके आगोश में ऐसे मदहोश थे
जैसे अम्बर से हो आज धरती मिली।
सूना मंज़र था खामोशियां हर तरफ
“कृष्णा” के संग चमन मे चहकती मिली।
के एम त्रिपाठी “कृष्णा”