गज़ल
वक्ती तौर पर आज गुनहगार हो गए,
निर्दोष होते हुए भी तलबगार हो गए!
पेश आए बड़ी बेरहमियों से हमसे,
सच सामने आया तो शर्मसार हो गए!
न था ज्ञान गीत गज़ल नज़्म का,
दिल की कही पर अश’हार हो गए!
रहे शान ओ शौक़त के नशे में चूर,
बेदखल हुए तो बेरोजगार हो गए!
ताउम्र बीता दी माँ बाप नें जिसके लिए,
चार पल संग बिताए अच्छे यार हो गए!
-अर्चना शुक्ला”अभिधा”