गज़ल
हम तो सुध बुध ही भूल जाते हैं
वो नजर से नजर कभी मिलाते हैं
कौन उल्फत की बात करता है
लोग मतलव से आते’ जाते है
काट दी ज़िंदगी फिर आएगा
जाने वाले न लौट पाते हैं
हाथ पर इक लकीर उसकी है
आओ निर्मल उसे मिटाते है।
ठोकरें दर- ब -दर लगीं लेकिन
खा के फिर उनको भूल जाते है।
हम फकीरों से पूछना क्या अब
भूख मे हंसते गुनगुनाते है
बाप को मुफलिसी कसक दे तब
भूख से बच्चे छटपटाते है