गज़ल
मेरे दिल पे ख्वाबों का पहरा रहा है
मुहब्बत को दिल ये तडपता रहा है
न तारे से पूछो कभी दर्द उसका
जो अम्बर से नीचे ही गिरता रहा है
मेरा आइना दिल निशाने पे उसके
वो पत्थर लिये रोज फिरता रहा है
किसी मां से पूछो शहाद्त की कहानी
दिया जिसके घर का भी बुझता रहा है
वफ़ा का सिला जब जफ़ा में मिला हो
जिगर में यही दर्द उठता रहा है
दया भावना से है महरूम इन्सां
अब इन्सान इन्सान को खा रहा है
सदा पास रह भी रहा फासला सा
वफा को जफा हश्र मिलता रहा है