नाजुक होती है मोहब्बत की डोर
गैर मजहबी से मुह न मोड़ा करो
निचे बुलंदी को तुम न थोड़ा करो
दोस्त ही है जो गम बाटने आते है
इन फरिश्तों को तुम न छोड़ा करो
नाजुक होती है मोहब्बत की डोर
हाथ थाम के दिल तुम न तोड़ा करो
आस्तीन का सांप ही छुरी मरता है
दुश्मनो से रिश्ता तुम न जोड़ा करो
थी सियासत मासूमियत का सबब
इसकी लाज बचालो तुम न कूड़ा करो
मजबूरिया सबकी होती है ‘अहमद’
बच्चों के गुल्लक तुम न फोड़ा करो