शब ओ रोज़ ओ माह ओ साल ‘अहमद’
मोहब्बत की है हर एक गम सहना है
अपनी रूदाद किसी से भी न कहना है
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बस एक ही खुवाहिश है मेरी ऐ बेगम
मुझे तेरी ही आगोस में जीना मरना है
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नन्ही बच्ची ने देखा है जब से चिड़या
जिद किये बैठी है पापा मुझे उड़ना है
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मत खीच इस दलालो की सियासत में
हमे तो उमर भर पाक साफ रहना है
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हमेशा तुम भी रहा करो खुश मिजाज
इंशा हो कोई सब्जी नही जिसे सड़ना है
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जान कुर्बान हो मुल्क की सरपरस्ती में
इस्लाम कह रहा है हमे भी मर मिटना है
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शब ओ रोज़ ओ माह ओ साल ‘अहमद’
बुढ़ापे में माँ की दिदो की रौशनी बनना है