गज़ल
महक अलग होती है, दिली प्यार की
भूले नहीं भूलते, हार प्यार की ।
देखिये गुजर गई, जिन्दगी तमाम
जी रहा हूँ जिंदगी, मिली उधार की ।
खड्ग की भी धार पर, दौड़े थे हम
हमने लड़ी स्वयं जंग, आर पार की ।
प्रेम श्रद्धा भक्ति में, बिंधा रहा मन
शायद यह बजह रही, मेरी हार की ।
कोशिश रही यही, भूलें न वायदे
इसीलिये न ली दवा, चढ़े बुखार की ।