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6 Feb 2017 · 1 min read

गज़ल

कौन है जो बादलों की ओट से मुस्काता रहा
कर के ईशारे रोशनी के पास बुलाता रहा

आखों पर परदे थे पहचान नहीं पाये हम उसे
बारिश की बौछार बन अहसास दिलाता रहा

लगता कभी बैठा वो मेरे मन की दरगाह में
जब झुकाया सिर कहीं खिसक वो जाता रहा

है बहुत ही प्यारा वो जैसे राधा का हो किसन
कई बार लगता रहा वो बंसी बजाता रहा

अब ढूंड रही उस छलिये को मेरी मन आत्मा
क्या यही प्रमात्मा जो रुप बदल भरमाता रहा।

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