गज़ल सुलेमानी
डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* गज़ल सुलेमानी *
हमारी याद आये तो कभी मिलना अकेले में
अन्धेरे तुम को अगर डराएँ कभी मिलना अकेले में //
तसब्बुर की तनहाई सभी को पेश आती है
ये छोटी से हैं कहानी सभी को पेश आती है //
नहीं तल्खी नही जज्बा न कोई शिकायत हो
अकेले पन से जब उक्ताओ कभी मिलना अकेले में //
खुदी से खुद का हो अगरचे सामना तेरा
कभी आवाज देना चले आयेंगे अकेले में //
तेरी बातें तेरी बोली वो मीठा सा लड़क्पन में बतियाना
सताता हैं अब अक्सर बहुत हमको अकेले में //
गमों से मन जब भी अकुलाये भीड से दिल जो बाज आये
हमें आवाज देकर बुला लेना अकेले में //
हमारी याद आये तो कभी मिलना अकेले में
अन्धेरे तुम को अगर डराएँ कभी मिलना अकेले में //
कभी बागों में कभी समन्दर का किनारा हो
घटाओं से भरे आसमान में जो चन्दा नजर न आता हो
सितारों की तरह जो कभी मजबूर पड़ जाओ
हमें आवाज देकर बुला लेना अकेले में
हमारी याद आये तो कभी मिलना अकेले में //