गज़ल :– बेवजह लोग गंगा नहाते रहे ।।
तरही गज़ल :–
बेवजह लोग गंगा नहाते रहे ।
बहर :– 212–212–212–212
मीठे सपने सदा ही लुभाते रहे ।
रात ख्वाबों में भी मुस्कुराते रहे ।
*हम हमारे ही हाथों ठगाते रहे ।
भाग्य को ही सदा गुनगुनाते रहे ।
कर्म में न दिखाई कभी आस्था ,
हसरतों को गले से लगाते रहे ।*
हाथ अब हाथ धरने से क्या फायदा ,
सारे अवसर तुम्हीं तो गंवाते रहे ।
दाग दामन में था कोई समझा नहीँ ,
बेवजह लोग गंगा नहाते रहे ।
चाँद सूरज धरा ये रहे हैं सदा ,
लोग आते रहे , लोग जाते रहे ।
बदले कितने मुखौटे यहाँ रोज़ तुम ,
आइने से क्यों चहरा छिपाते रहे ।
अनुज तिवारी “इंदवार”
उमरिया
मध्य-प्रदेश