गज़ल:- नई है सोच नया इन्कलाब का सूरज
नई है सोच नया इन्क़लाब का सूरज !
निकल रहा है नई आबो-ताब का सूरज !!
खुदा के खौफ से डरना जो जानते ही नहीं !
डुबो के रहता है वो उन जनाब का सूरज !!
रसूल की जो बताई डगर पे चलते है !
उन्ही के घर में चमकता सवाब का सूरज !!
मिला है इल्म ज़माने को उसकी नेमत है !
उसी के हक़ दे बयां हर किताब का सूरज !!
बरी ही देर लगी उनको दिल में आये पर !
निकल तो आया है उनके जवाब का सूरज !!
फरेब झूठ की बुनियाद पर न रख रिश्ते !
तलूअ होता है यूँ इज्तिराव का सूरज !!
जो वालिदेन की खिदमत में है श्रवण “साहिल ” !
खुदा कभी न उन्हें दे अज़ाब का सूरज !!