ग्रीष्म ऋतु भाग 1
भोर काल में देश धरा पर
कोयल की कुहू हो रही है।
मधुर सप्त स्वर रागिनी सबको
प्रभात काले जगा रही है।
बसंत अपनी छटा समेटे
अपने घर को जा रही है।
तपन लिए अब नए जोश से
ग्रीष्म ऋतु भी आ रही है।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’
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