ग्रीष्म ऋतु भाग ४
दोपहरी आते ही धरा कण
अग्निकुंड रूप धरने लगे है।
देहाती जन के दिन अब तो
आम्र की छांव में कटने लगे हैं।
वन प्राणी सब किरिन्दरा व
बरगद जल में बटने लगे हैं।
ग्रीष्म काल इस दोपहरी में
धरा से जिगने उड़ने लगे हैं।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’
््््््््््््््््््््््््््््््््््््््