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28 Oct 2022 · 1 min read

ग्रहण

ग्रहण –

चांद शरारत सोलह कलाएं कभी पूर्ण से शून्य ,शून्य से पूर्ण सृष्टि का प्रभा प्रभात निशा का राज।।

सूरज और चंद्र में होती रहती रार सूरज आग चाँद शीतल शौम्य सूरज अंधकार को निगलता निकलता चाँद अंधकार के साथ।।

सूरज और चांद निशा दिवस के साथ दोनों का अस्तित्व आवनी आकाश आवनी ना होती सूरज चाँद का होना भी बेकार।।

सूरज चाँद एक दूजे शत्रु नही मित्र सम्भव नही दोनों के अपने करते कार्य।।

दो किनारे चलते साथ साथ कभी चाँद सूरज आवनी के मध्य अपनी छाया से दिन में कर देता रात।।

सूर्य का ग्रास सूर्य ग्रहण की बात कभी सूर्य चन्द्र आवनी के मध्य अपनी छाया माया से चन्द्र को देता चुनौती चन्द्र ग्रहण का सत्त्यार्थ ।।

विज्ञान वैज्ञानिक ख़ोगोल गतियों के सिंद्धान्त का स्वीकार ।।

ग्रहण पूर्व सूतक का रिवाज ग्रहण होता जब समाप्त पावन नदी सरोवर में स्नान ।।

पूजन ध्यान दान ग्रहण सूरज चाँद ग्रह देव समान युग सृष्टि कि मांग ग्रहण उद्धार देव क्लेश मुक्त का भाव आस्था विश्वासः।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

Language: Hindi
1 Like · 159 Views
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