ग्रंथ
नारी सौन्दर्य पर
लिखे हैं ग्रंथ बहुत सारे
अमर हो गये लिखकर
उसकी देह ,रूप ,ज़ुल्फो पर
हुए हैं गुणगान बहुत नाज़- नखरों के
मगर
नही आती नज़र मुझको
किसी भी ग्रंथ में
धरातल पर रहती औरत
अपनी नई साड़ी के पल्लू से
संतान का नाक पोंछती औरत
झाडू -पौछा लगाती औरत
दिन भर रसोई में फरमाईशों को
पूरा करने वाली औरत
स्वयं के लिए सुकून के
दो पल तलाशती औरत
माना बहुत रूप है उसके
परन्तु लिखता काश कोई
स्त्री की देह से परे कोई ग्रंथ
स्त्री पर कोई ग्रंथ ।