गौरैया बोली मुझे बचाओ
गोरैया बोली मुझे बचाओ
अस्तित्व ना मेरा सकल मिटाओ
मैं हूं तुम्हारी मित्र पुरानी
बंद हुआ है दाना पानी
रहने को भी जगह नहीं है
अगली पीढ़ी कहां से लाऊं
कैंसे मैं अस्तित्व बचाऊं
पहले जैसा माहौल नहीं है
दुनिया भी गंभीर नहीं है
भोर में ही उठ जाती हूं
फिर मैं तुम्हें जगाती हूं
गीत प्रेम के गाती हूं
कीट पतंगे खाती हूं
मर जाती हूं बिन पानी के
तारों से टकराती हूं
कच्चे घर अब रहे नहीं
घोंसला बना नहीं पाती हूं
चलता रहा अगर ऐंसे ही
दुनिया से विदा हो जाऊंगी
फिर कैसे तुम्हें जगाऊंगी
बचपन की मैं मित्र चिरैया
नजर नहीं आऊंगी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी