गौरी।
गौरी।
-आचार्य रामानंद मंडल।
पंडित महादेव मिश्र बीस बीघा जमीन के जोतिनिया रहथि।जमींदारे लेखा ठाठ बात। कनाती वाला हबेली आ छतदार दरबाजा।नौकर -चाकर,दू जोड़ा बैल,हरबाह,जन,एगो भैस आ ऐगो गाय,चरबाह। पंडित जी पूजा न कराबथि वरन् पूजा करैत।माने की यजमानी न।
सुबह पूजा पाठ के बाद दरवाजा पर बैठकी। जहां मुंहलगा सभ के संगे चाय -पान आ तशवाही।एकर इ न माने कि खेती पर ध्यान न,से बात न। खेती के समय खेत के आड़ी पर बैठ के जन मजदूर पर ध्यान। खेती से दू सौ मन धान,एक सौ मन गेहूं आ भरपूर तेलहन-दलहन हो जाइन। गांव के राजनीति करे मे माहिर रहतन। प्रतिष्ठा खूब रहैन।
पंडित जी के पत्नी सती देवी रहिन।सति देवी खुब सुन्नर रहय।मृदुभासिनी आ वाक्पटुनी सेहो रहय।त पंडित जीयो कम न। सामान्य कद के गोर शरीर, बड़ बड़ आंख आ रोबदार मोछ।माथा पर त्रिपुंड। परिवार खुश हाल।
परंतु बिधना के बिधान।सती देवी एगो सुन्नर लड़िका के जनम देलक। परंतु छठियार के बिहाने सती देवी परलोक सिधार गेल। पंडित जी के विधवा बुढ़ी माय वोइ लड़िका के पाल लक। पंडित जी दुखी रहे लगलन।
पंडित जी आबि भगवान शंकर के आउर पूजा करे लगलन। अपने हाथे माटी के महादेव बनाबथि, बेलपत्र पर राम नाम लिखैत। वोइ बेलपत्र आ कनेर -धथुर फूल से पूजा करैथ।
पंडित जी आबि पैदल कांबर लेके बाबा बैद्यनाथ धाम जाय के बिचार कैलन आ अपन मुंहलगुआ सभ के बतैलन।बिचार भेल कि अइ माघ श्री पंचमी के बाबा बैद्यनाथ पर जल चढायल जाय।सभ तैयारी भेल नौकर -चाकर संगे रसोइया तक कांवर लेके जायत।माने कि खाय पिये के सभ समान भरिया लेके चलत।खाली जलावन ठहराव स्थान पर खरीदल जायत।
पंडित जी अपन चचेरा ससुर के बाबा धाम चले के संवाद पठैलन।चचेरा ससुर गिरीश पाठक से खूब पटैन।
पहिलोही कहीं तीर्थाटन मे जायत रहलन त पाठक जीयो संगे रहैन। पाठक जी बाबा धाम जाय के लेल पंडित जी के घर कैलाशपुर अइलन। परंतु संग में रहैन पच्चीस साल के युवती बेटी गौरी। पाठक जी सोचलैन कि अइ साल गौरी के हाथ पीला क देबय।अइसे पहिले गौरी के बाबा बैद्यनाथ के दर्शन करा दैबक चाही।
गौरी कालीदास स्मारक महाविद्यालय,चंदौना से बीए समाजशास्त्र कैले रहे। गौरी गौरांगी, कोमलांगी आ व्यवहार कुशल नवयौवना रहय। पंडित महादेव मिश्र गौरी के बाबा बैद्यनाथ धाम दर्शन कराबे के विचार से प्रसन्न भेलन। पंडित महादेव मिश्र आ गौरी के यदा कदा ओझा -सारी बाला मनोविनोदो भेल रहय।अइ भेंट से दूनू गोरे हर्षितो रहय।
बाबा धाम यात्रा शुरू भेल।सभ पियर -पियर वस्त्र मे।सभसे आकर्षक पंडित महादेव मिश्र आ गौरी पाठक लागे। जेना संयासी -संयासिन।सभसे पहिले कुल देवता,गांव देवता आ महादेव मठ में पूजा भेल आ बाबा धाम के लेल प्रस्थान।हर हर महादेव के स्वर से धरती आकाश गुंजायमान हो गेल।
सभ ठहराव स्थान पर शिव पुराण के चर्चा पंडित महादेव मिश्र करैथ।सुनिहार केवल आ केवल गौरी पाठक।आउर लोग खाना -पीना के व्यवस्था मे। मुख्य व्यवस्थापक रहथि -गिरीश पाठक।
शिव पुराण के कथा मे शिव -सती के प्रेम,सती के हवन कुंड में प्रान त्याग आ गौरी के शिव से पुनर्विवाह। प्रेम कथा से दूनू गोरे प्रभावित होय लागल ।धीरे धीरे पंडित जी आ गौरी मे प्रेम के प्रस्फुटन होय लागल।प्रेम के रंग मे रंगाय लागल।अन्य लोग अइ प्रेम से अंजान रहय।
आबि त गौरी, पंडित जी के पैरों दबाबे लागल। परंतु बाबा बैद्यनाथ धाम दर्शन आ जल चढाबे के ध्यान रहय। पंडित जी आ गौरी शारीरिक पवित्रता के लेल साकंक्ष रहतन। यात्रा समाप्ति भेल। ठीक माघ श्रीपंचमी के बाबा बैद्यनाथ के दर्शन भेल आ पंडित जी आ गौरी लिंगाकार बाबा बैद्यनाथ पर जल चढैलन।सभ लोग जल चढैलन।
पंडित महादेव मिश्र अप्पन कुल पुरोहित पंडा के यहां डेरा डाल लन आ गिरीश पाठक से कहलन -दू सप्ताह बाबा धाम में रूकब।दू गो कमरा लेल गेल। भोजन बनाबे के लेल अलग से।एगो कमरा में पंडित जी, गौरी आ गिरीश पाठक।दोसर रुम में बांकी लोग।परंच गिरीश पाठक के ज्यादा समय भोजन आदि के व्यवस्था में बीते ।ज्यादा तर दोसर कमरा में रहथि। पंडित जी आ गौरी के एकर लाभ मिलैत रहय।दूनू गोरे के प्रेम परबान चढ़ैत रहय। एक तरह से शिव आ गौरी के कथा दुहराबे के विचार करे लगलन।
एकटा दिन पंडित महादेव मिश्र बजलन -गौरी । बाबा धामे मे दूनू गोरे के बिआह क लेबे के चाही।एहन पवित्र स्थान आ समय कंहा पायब।
गौरी बाजल -हां। ओझा जी।बात त पवित्र आ नेक हय।हमहूं आबि अंहा बिना न जीव सकैय छी। अंहा से हमरा पवित्र प्रेम हो गेल हय।
पंडित महादेव मिश्र बजलन -बिधाता के इहे मंजूर बुझाय हय। भगवान भोलेनाथ के जीवन घटना सन हमरा संगे घट रहल हय।
गौरी बाजल -बिधाता जे करय छथिन,अच्छे करय छथिन। परंतु बाबू जी से पूछ लिये के चाही।
पंडित महादेव मिश्र बजलन -हम गिरीश बाबू से पूछ लेबैय। हमरा विश्वास हय जे वो मान लेतन।
गौरी बाजल -जी। हमरो विश्वास हय जे बाबू जी मान लेथिन।
दोसर दिन रात मे जब गिरीश बाबू सूते ला अइलन त पंडित जी बजलन -गिरीश बाबू।एगो महत्वपूर्ण बात करे के चाही छी।
गिरीश पाठक बजलन -ओझा जी।बाजू।
पंडित जी -हम अंहा से गौरी के हाथ मांगै छी। हमरा विश्वास हय जे हमरा गौरी के हाथ देब।
गिरीश पाठक -अचानक इ मांग सुनके सन्न रह गेलन आ सोचे लगलन।
गौरी बाजल -हां। बाबू जी। ओझा जी ठीके मंगलैन हय। हमरो ओझा जी से प्रेम हो गेल हय। हमरा वो साक्षात महादेव लगैत छथि।हम हुनकर गौरी।हमरो विश्वास हय जे अंहा ओझा जी के मांग मान लेबैय।
गिरीश पाठक बजलन -ठीक हय। काल्हि रात मे बतायब।
गिरीश बाबू मन मे गुनधुन करय लगला।सांझ तक निष्कर्ष निकाल ला कि ओझा पंडित महादेव मिश्र आ गौरी के बिआह सर्वथा उचित होयत।
रात मे जब सुते गिरीश बाबू अइलन त पंडित जी पुछलैन -गिरीश बाबू कि बिचार कैलियन।
गिरीश बाबू बजलन -जे अंहा आ गौरी के विचार हय सेहे विचार हमरो हय।इ उचित आ मंगल विचार हय।
काल्हिये बाबा के मंदिर मे शुभ पानिग्रहन सम्पन्न कैल जाय।
आइ सबेरे दोपहर से पहिले गिरीश बाबू , गौरी के हाथ पंडित महादेव मिश्र के हाथ मे सौंप देलन।बाबा भोलेनाथ के साक्षी मानैत पंडित महादेव मिश्र गौरी के मांग मे सेनूर भर देलन।विआह बाबा धाम के पंडा करैलन।आइ गौरी महादेव के अर्धांगिनी बन गेल।सभ खुश रहे। बाबा के जयकारा लागल।
एगो स्कार्पियो आ एगो मिनी ट्रस्ट भाड़ा भेल। स्कार्पियो से दुल्हिन गौरी – दुल्हा महादेव आ ट्रक से गिरीश बाबू आ अन्य लोग घरे कैलाशपुर अइलन। पंडित महादेव मिश्र के माय दुल्हिन गौरी आ दुल्हा महादेव के आरती उतार लैन आ गृह प्रवेश करैलन।
कुछ काल बाद गौरी एगो लड़िका विश्वनाथ के जनम देलक।सती के जनमल लड़िका काशीनाथ केयो गोरी खूब माने। दूनू लड़िका काशीनाथ आ विश्वनाथ जवान भेल। शादी विआह भेल। गौरी आ पंडित महादेव मिश्र आइ दादी -दादा बन गेलन। परंतु गौरी पाठक आ पंडित महादेव मिश्र के प्रेम आइयो दिगार मे चर्चित हय।
स्वरचित @सर्वाधिकार रचनाकाराधीन।
रचनाकार -आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सह साहित्यकार सीतामढ़ी।