गौरव उत्थान भारतभूमी की
भारत भू वीरोँ का गौरव
वीरोँ का स्थान
ऋषि मुनि यति तपस्वी योगी
करते पुण्य सुखद विश्राम ।
जहाँ सत्यशोधक लोग बढ़े
पूर्ण अहिँसा का स्थान,
दया दान करुणा की सतत सत्कर्म से
है भारत भू महान।
नदियाँ सुंदर, झरने मनोहर
पल पल देते शांति संदेश,
सुरम्य घाटियाँ,तपः क्षेत्र
प्राणप्रिय! हमारा न्यारा देश।
श्वेत हिमाच्छादित पर्वत शिखर
नम निरभ्र,तरंगिणी पुण्य सरोवर,
वनाच्छादित धरा पूरित रत्न,खनिज धरोहर
विद्वान जहाँ सर्वत्र प्रखर।
अतुल संपदा हरति विपदा को
सम्मिलन सुंदरता का नाम,
है यही वीरोँ का स्थान
चिर पवित्र भारत भू महान ।
समय हर पल बता रही
संकट मेँ भारत भू का प्राण;
कट रहे, हैँ उजड़ रहे जन -जन
निकृष्ट सोच निर्दयता और घोर त्राण !
है विवश करती सोचने को धरा
प्राणप्रिय पुण्य वसुंधरा,
हे वीर ! क्योँ ऐसे पड़ा
किस विपत्ति से तु है अड़ा?
जन्म धरा पर पाकर तूने
क्या सम्मान खोया या पाया,
भारत भू प्रहरी, हे अमर्त्य पुत्र!
आज कहाँ ध्यान भटकाया ।
जिनके संघर्षों की अमिट छाया मेँ
थे असंख्य लोग करते विश्राम,
पर कहाँ आज फँसी डूबी श्रद्धा
मिली व्यथन, शोषण, कंपन, थकान।
अरिमर्दन! हे वीर व्रती
दृढ़ प्रतिज्ञ! हो, कहती धरित्री,
अखंड भारत हो पुनः, ना कोई व्यवधान;
हो, सुरभित वर्तमान गौरव उत्थान।