गोविंद
क्या करूँ गोविंद….
तुम्हारे बाल रूप का आलिंगन
या तुम्हारे माखन सने मुख का चुम्बन ?
क्या करूँ गोविंद….
तुम्हारे संहार रूप का नमन
या रास रूप का वरण ?
क्या करूँ गोविंद….
तुम्हारे सखा रूप को पाऊँ
या नारायण रुप में रम जाऊँ ?
क्या करूँ गोविंद….
विदूर के घर भोजन परोसूँ
या दुर्वासा बन उदर फेरूँ ?
क्या करूँ गोविंद….
पार्थ की जगह खुद को रख लूँ
या राधा का जनम ले लूँ ?
क्या करूँ गोविंद….
गोपी बन जी लूँ
या गीता का रस पी लूँ ?
क्या करूँ गोविंद….
तुमको खुद में समा लूँ
या मीरा बन तुममें समा जाऊँ ?
क्या करूँ गोविंद….
तुम्हारे हर अवतार को समझने हर युग में आऊँ
या बहेलिये के बाण को रोकने तलवे के आगे लेट जाऊँ ?
क्या करूँ गोविंद….
तुम्ही बताओ
तुमको सवारूँ
कि तुमको निहारूँ ?
तुमको चाहूँ
की तुमको पाऊँ ?
अनगिनत रूप हैं तुम्हारे
मैं किस रूप पर मर जाऊँ ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 24/06/14 )