‘गोवा की सैर’
‘गोवा की सैर’
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गोवा की आंखो में,बसे मोती;
बाकी आंख, अग्निवर्षा होती;
हर जगह दिखता है,गिद्धराज;
गोवा में बसता सिर्फ,सरताज;
सब जगह घूमो, लबादा ओढ़;
गोवा जाओ, पर मत शर्माओ;
छोटे कपड़े में, बांधो एक डोर;
सिर्फ आंख ढके, कालाचश्मा;
तनपर पड़े,सूर्यप्रकाश अपना;
यहां जाना,कितना है आसान;
ना तो, भारी सामान का बोझ;
ना,लोग क्या कहेंगे का ही डर;
बस पर्स पे रखो अपनी नजर;
संस्कार भी,सब ही भूलों यहां;
समुंद्र किनारे खूब, झूलों यहां;
जरूर पूरे कर लो , सब सपने;
यहां तो , हर लोग ही हैं अपने
वापस जब आओ , अपने घर;
खूब ही शर्माओ,जाओ जिधर;
जैसे ‘दुश्मन’ सब ही , घर बसे;
‘गोवा के’लक्ष्मण’ मिले किधर;
मजा ना मिले यहां जाए बगैर,
चलो सब करें , गोवा की सैर।
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…✍️ पंकज कर्ण
………कटिहार।।