गोवर्धन
गोवर्धन है
स्थान निराला
होने नहीं दी
गोपाला ने निराशा
उठाया एक ऊँगली से
गिरिराज
भंग किया इन्द्र का
अभिमान पल में
दी है सीख
किशन ने सदैव
करो रक्षा अपने
जन की
है पवित्र पर्व
अन्नकूट
भरे रहें भंडार
करो नमन
किशन को
बारम्बार
करी रक्षा
अपने ग्वालो की
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल