गोपाल दास ‘नीरज’ (गीत ऋषि)
न फिर सूर्य रूठे, न फिर स्वप्न टूटे,
ऊषा को जगाओ, निशा को सुलाओ।
दिये से मिटेगा न मन का अँधेरा
धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ।
हिंदी काव्य मंच के गीत ऋषि श्री गोपाल दास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1925 को ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रान्त में हुआ , जिसे आज उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है। इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के घर नीरज जी का जन्म हुआ। पिता 6 वर्ष की अल्पायु में ही गोपाल को छोड़ गोपाल को प्रिय हो गए। हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने के बावजूद घर चलाने के लिए कभी टाइपिस्ट तो कभी सिनेमा हॉल में नौकरी करनी पड़ी। परन्तु पढाई अनवरत जारी रही। नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बी०ए० और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम०ए० किया।
उन्होंने मेरठ कॉलेज ,मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया किन्तु कॉलेज प्रशासन द्वारा उन पर कक्षाएँ न लेने व रोमांस करने के आरोप लगाये गये जिससे कुपित होकर नीरज ने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कविता की दुनिया में रम गए। उनकी कविताओं की मांग के कारण उन्हें फिल्मो में गीत लिखने का मौका मिला और 70 के दशक में तीन फिल्मफेयर अवार्ड भी मिले। परन्तु नीरज का उन्मुक्त मन बम्बई की तंग गलियों में रमा नहीं और वे वापस अलीगढ आ गए। उन्होंने लिखा
‘आँसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा’
और यह सत्य भी था की वे जब तक जीवित रहे लगभग सभी प्रमुख काव्य मंचो पर उनकी उपस्थिति अनिवार्य रही। उनके गीत मधुरता के साथ साथ अनेक सन्देश समेटे रहते थे। जैसे:-
‘ आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ। ‘ या:-
‘कारवाँ गुजर गया गुब्बार देखते रहे। ‘
उनके दर्जनों गीत संग्रह और कविता की पुस्तकें प्रकाशित हुईं। 19901 में पद्म-श्री, 1994 में यश भारती और 2007 में पद्म-विभूषण सम्मान से वे सम्मानित किये गए। अनेक कविता प्रेमियों की आँखों में अश्रु भर 19 जुलाई 2018 की शाम को गोपाल दास जी परम धाम को प्रस्थान किये। उनके तो वैसे सारे गीत अमर हैं, पर अपने सन्दर्भ में कहा गया उनका यह शेर बिलकुल सत्य है कि :-
“इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥”
:-मोहित मिश्रा