गोपाल जी
गोपाल जी
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उठो जरा गोपाल जी ,जागो अब गोपाल
भ्रष्ट धरा हो गयी है , जागो भूपाल
बढ़ती अनीति धरा पर. दे दो आप विराम
विनाश कर दो दुष्ट का , जीना हुआ हराम
जैसे मारा कंस को , वैसे मारो हैवान
तहस नहस कर दिया है,बचा खुचा ईमान
रूप कोन सा धरो तुम , भारत मात पुकार
लेकर तुम अवतार अब,कर दो आज फुंकार
अधर्म का बोलवाला , हुआ धर्म का नाश
कीर्ति पाये सदा यश ,होता असत विनाश
जनान्दोलन करे जब ,कोई नहि परिणाम,
मुरलीधर तुम उतर भू ,रच दो नव आयाम
लाज रखी द्रौपदी की , ऐसे रखिये आज
दो पट विस्तार प्रभू जी, बचा दीजिये लाज