गोदान प्रेमचंद की आत्मा है- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
आलेख-‘गोदान प्रेमचन्द की आत्मा है
(राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी)
प्रेमचन्द को यदि उपन्यास सम्राट कहा जाये तो कोई अतिश्नियोति होगी। सम्भवत: वे हिन्दी के प्रथम उपन्यास कार भी है। चाहे उनका प्रथम उपन्यास ‘सेवासदन(1916) हो या आखि़ारी उपन्यास ‘गोदान(1936) उन्होनें उपन्यासों में अपने पात्रों को जिया है, वे केवल उपन्यास के पात्र ही नहीं बलिक आज भी हमें किसी गाँव जीते जागते मिल जाएगें। सन 1936 में ही उन्होनें ‘मगंलसूत्र नाम से एक उपन्यास लिखना शुरू किया था लेकिन किन्हीं कारणों से वह पूरा न हो सका। इस प्रकार ‘गोदान ही उनका अंतिम और सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास रहा।
मैं यदि यह कहूँ कि ‘गोदान में प्रेमचन्द की आत्मा बसती है, तो यह गलत नहीं होगा।’गोदान में प्रेमचन्द जी ने अपने आस पास जो भी घटित हुआ,जो भी देखा, तथा अनुभव किया उसे छोटी-छोटी कथाओं के रूप में गोदान में बड़े ही खूबसूरती से संजोया हैं। ‘गोदान में मुख्यरूप से तीन प्रमुख कथाएँ है जिसमें पहली कथा इस उपन्यास के महानायक ‘होरी की है,दूसरी कथा ‘राय साहब की है तथा तीसरी कथा ‘मेहता एवं मालती जी की है। ये तीनों कथाएँ अपने-अपने बिशेष वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। पे्रमचन्द ने होरी के माध्यम से भारत के सम्पूर्ण किसानों की दशा का वर्णन किया है तो राय साहब,राजा सूर्य प्रताप सिंह,अमरपाल सिंह आदि को शोषक वर्ग का प्रतिनिधि बनाया है। इस प्रकार हम कह सकते है कि ‘गोदान में प्रेमचन्द नेनिम्नवर्ग,मध्यम वर्ग एवं उच्च वर्ग, तीनों वर्गो को अपने पात्रों के माध्यम से उपन्यास में ढाला है एवं पात्रों को प्रतीक बनाकर पूरे मानव समाज का चित्रण सफलता पूर्वक किया है।
कथा वस्तु की दृषिट से देखे तो ‘गोदान की रचना प्रेमचन्द ने भारतीय ग्रामीण जीवन का यर्थाथ चित्रण करते हुए एक गाँव के भोले भाले किसान को ध्यान में रखकर ही की है। जिसमें होरी पूरे कृषक वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। प्रेमचन्द्र ने ‘गोदान में गाँव के कृषक जीवन का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है इसके साथ-साथ उन्होनें शहरीय परिवेश को भी सफलता पूर्वक दर्शाया है।
चरित्र चित्रण की दृषिट से देखें तो उपन्यास में स्वयं प्रेमचन्द की यह धारणा है कि ‘उपन्यास को मैं मानव चरित्र का चित्रण मात्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उससे रहस्यों खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है। एक स्थान पर उन्हाेंने लिखा है कि ‘उपन्यास के चरित्र का विकास जितना ही स्पष्ट,गहरा और विकास पूर्ण होगा,उतना ही पढ़नें वालों पर असर पड़ेगा। प्रेमचन्द पात्रों के चरित्रों का चित्रण उन्हें बिशेष परिसिथतियों में डालकर करते है। होरी,गोबर,धनिया,सिलिया और मातादीन जैसे ग्रामीण पात्रों को प्रेमचन्द ने बिषय परिसिथतियों में डालकर जीवन रूप में चित्रित किया है। दूसरी तरफ राय साहब, मेहता, मालती, खन्ना,गोविन्दी आदि पात्र परिसिथतियों के भँवर में पढ़कर अपने समग्र परिवेश के साथ हमारे समाने उपस्थित होते है।
‘होरी के चरित्र चित्रण की तो हम विश्व के प्रमुुख उपन्यास महानायकों में गिन सकते है। होरी एक ऐतिहासिक एवं अमर पात्र है जो कि इतने समय बाद आज भी हमारे गाँवों में किसी न किसी रूप में मिल जाता है। होरी भारतीय कृषक-वर्ग का प्रतिनिधित्व करता हुआ सभी गुण-दोषों को अपने में समेटे हुए समाने आता है वह एक सीधा-साधा,भोला-भाला और छल-कपट से रहित किसान है। वह मन,कर्म एवं वचन से एक है। मानव मात्र के लिए सहानुभूति,बन्धु-बान्धवों के प्रति विश्वास और प्रेम उसके चरित्र की बिशेषताएँ हैं जो कि पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। अनके कष्ट सहने और आपत्तियों से घिरा होने पर भी होरी आत्म-सम्मान की भावना नहीं छोड़ता। उसका चरित्र इतना स्वाभाविक,सजीव एवं करूण है कि पाठकों के लिए वह जीवांत हो गया है पाठकों को उससे बिशेष हमदर्दी एवं सहानुभूति हो जाती है। और पाठके उससे स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस करते है।
उसकी कारूणिक मृत्यु पर पाठक अपने आप को रोक नहीं पाता उससे नेत्र भीग जाते है। ‘गोदान के किसी एक पात्र को हम प्रेमचन्द का प्रतिनिधित्व करता नहीं कह सकते, लेकिन, हम यदि होरी को मेहता से जोड़ दे तो जो भी उसका मिलाजुला रूप हमारे सामने आयेगा उसे हम जरूर कुछ हद तक प्रेमचन्द का आदर्श मान सकते हैं। मेहता में यदि उन्होंने अपने विचार ढाले हैं, तो होरी में उनके बराबर परिश्रम करते रहने का दृढ़ शक्ति मौजूद हैं।
यदि हम इस उपन्यास का मूल उददेश्य देखे तो प्रेमचन्द उपन्यास को मात्र मनोरंजन की वस्तु न मानकर मानव समाज के कल्याण का साधन मानते थे। प्रत्येक यर्थाथ चित्रण के पीछे उनका कोर्इ न कोर्इ उददेश्य अवश्य रहा होगा। आदर्शवाद का मोह त्यागकर प्रेमचन्द ने सम्पूर्ण नागरिक एवं ग्रामीण भारत का कच्चा चिटठा प्रस्तुत किया है तथा पाठकों को जीवन निर्माण की बात सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। ‘गोदान में ऋण की मूल समस्या के अलावा गरीबी,धार्मिक अन्ध विश्वास, अशिक्षा ,विवाह, प्रदर्शन,तथा पारिवारिक विघटन आदि समस्याओं को चित्रित करके प्रेमचन्द ने भारतीय जीवन के नव-निर्माण की संभावना को प्रच्छन्न उददेश्य के रूप में प्रस्तुत किया है।’गोदान भारत में अबाध चल रहे शोषण चक्र का यर्थाथ रूप हमारे सामने रख देता है। इसमें भारतीय गरीब,भोली-भाली जनता का दु:ख दरिद्रता और गहन पीड़ा स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हो जाती है,और साथ ही साथ इस पीड़ा और दु:ख के मूल स्त्रोत भी अपके सामने स्पष्ट आ जाते है।पाठकाें के सामने पतनोन्मुख, रूढ़ीवादी, हिन्दू समाज के चरमराते हुए ढाँचे का यर्थाथ रूप सामने आ जाता है।
प्रेमचन्द के इस उपन्यास ‘गोदान में शोषण के अबाध चक्र को प्रस्तुत कर उसके प्रति जनजीवन को सावधान करते हेैे और अंत में वर्गहीन समाजवादी समाज की स्थापना का संदेश भी है शांति और सच्चे सुख के पाने की शांत संभवना व्यक्त काते है यही ‘गोदान में प्रेमचन्द का उददेश्य एवं शाश्वत संदेश है। अंत में, मैं यह कहँगा कि नि:सन्देह ‘गोदान प्रेमचन्द की अमर कृति है। यह हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। ‘गोदान के बिना हिन्दी उपन्यास जगत अधूरा है। ‘गोदान में प्रेमचन्द की आत्मा बसती है।।
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आलेख- राजीव नामदेव ”राना लिधौरी, टीकमगढ़,(म.प्र.)
संपादक ‘आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र..लेखक संघ
नईचर्च के पीछे,शिवनगर कालोनी,
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