गैरों की भीड़ में, अपनों को तलाशते थे, ख्वाबों के आसमां में,
गैरों की भीड़ में, अपनों को तलाशते थे, ख्वाबों के आसमां में, हकीकत को भुलाते थे।
दिल ने ही चुनी थी ये राहें, सच्चाई की तलाश में, झूठ के जाल में फंसते रहे, खुद को ही समझाते थे।
अब न राह भटकेंगे, न किसी के झूठ में फंसेंगे, अपने ही दिल की सुनेंगे, और खुद को ही अपनाएंगे।
सच की राह पर चलेंगे, सपनों को हकीकत बनाएंगे, धोकेबाजों के शहर में, ईमानदारी का दीप जलाएंगे।
अपनी गलतियों से सीखेंगे, फिर से न दोहराएंगे, हर कठिनाई को पार करेंगे, और मंजिल तक पहुँच जाएंगे।
वक्त की मार को सहेंगे, हर दर्द को मुस्कान में ढालेंगे, हमारा हौंसला न टूटेगा, हम फिर से खड़े हो जाएंगे।
कहानी यहाँ खत्म नहीं होगी, ये तो बस एक शुरुआत है, हमारी मेहनत और सच्चाई से, मिलेगी हर मंज़िल की सौगात है।